भक्त भक्ति भगवन्त गुरू चतुर नाम वपु एक (भक्तमाल) शुद्ध भक्त से ही भक्ति की प्राप्ति होती हैं ;भगवद -कृपा से ही साधु संग मिलता हैं ।महा पातकी भी साधु कृपा से परम वैष्णव बन सकते हैं , दैत्य पुत्र प्रह्लाद को ऋषिवर नारद से ' स्मरण' भक्ति प्राप्त हुआ था ।जीवन मुक़्त महात्माओ में भी भगवद भक्ति में लीन रहने वाला भगत दुर्लभ हैं ।अभी , वैसे ही एक वैष्णव आख्यान को अति साधारण शब्दो में लिखने की प्रयास करूंगा । यह बात हैं पन्ध्रवी शताब्दी की, जब भक्ति संतो ने हरिनाम प्रचार से मानव कल्याण का अनोखी पदखेस्प ग्रहण किया था ; उस काल में उत्तर-पूर्वी भारत में तंत्र शास्त्र का ग्लानि हुआ करता था ;पशुवलि के साथ साथ ही नरवलि तक धर्म का ब्याभिचार हुआ करता था। उसी शतक के अंतिम भाग और सोलहबी शतक में कामरुप ओर आसाम राज्य (तत्कालीन अहोम)मैं महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव ,माधवदेव और दामोदरदेव ने भागवत धर्म का प्रतिष्ठा कर भक्ति से जनकल्याण प्रारम्...
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